Rahu ki Mahadasha me Graho ki Antradasha
राहु की महादशा में ग्रहों की अंतरदशा हमें काफी प्रभावित करती है। इनके शुभ अशुभ परिणामों का फल हमें कुंडली में इनकी स्थिति के अनुसार मिलती है।
जब भी किसी ग्रह की दशा हमारे जीवन में आती है तो उसके साथ ही साथ उन सभी नौ ग्रहों की अंतरदशा भी बारी बारी से आती रहती है और इसके अच्छे एवं बुरे प्रभाव ग्रहों की शुभ एवं अशुभ स्थिति के अनुसार ही मिलती है। आज हम बात करने जा रहे है राहु की महादशा में ग्रहों की अंतरदशा की।
वैसे राहु की महादशा 18 वर्षों की होती है। इन 18 वर्षों में अन्य सभी ग्रहों की अंतरदशा बारी बारी से आती है और इस वजह से इनकी महादशा में पूरे 18 वर्ष एक जैसे नही रहते है। इसके शुभ एवं अशुभ प्रभाव अलग अलग तरीके से सामने आते रहते हैं।
चूँकि वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु ग्रह को एक छाया ग्रह माना गया है अर्थात यह जिस किसी ग्रह के साथ युति या दृष्टि संबंध बनाता है तो यह उसी ग्रह के अनुसार फल देने लगता है।
हांलाकी राहु को एक पापी ग्रह की संज्ञा दी गयी है इसकी दशा, महादशा, अंतरदशा, प्र्त्यंतर दशा, सूक्षम दशा प्राय: कष्टकारी ही होती है। लेकिन कुंडली के कुछ भावों में यह सर्वथा योगकारक बन जाते है और जातक को रंक से राजा बना देते की भी क्षमता रखते हैं।
राहु की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतरदशा rahu ki mahadasha me graho ki antradasha
राहु की महादशा में ग्रहों की अंतरदशा का प्रभाव व्यक्ति की जन्मकुंडली और ग्रहों की स्थितियों पर निर्भर करता है। यह अंतरदशाएं व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार के गतिशीलता, परिणाम और प्रभाव को दर्शाती हैं।
राहु की महादशा का प्रभाव जातक के जीवन में अट्ठारह वर्षों तक एक जैसा नहीं रहता है सभी ग्रह अपनी अपनी अंतर्दशा में अपना अलग अलग प्रभाव देते हैं तो आइए देखते है राहु की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतरदशा आने पर जातक के जीवन में किस प्रकार का प्रभाव पड़ता हैं।
कुछ अंतरदशाएं धन, स्वास्थ्य, करियर, विवाह और परिवार जैसे क्षेत्रों में प्रभाव डालती हैं, जबकि कुछ अन्य गहरे आत्मिक या आध्यात्मिक परिवर्तनों को लाने की क्षमता रखती हैं। यह भी देखा गया है कि राहु की महादशा जीवन को अधिक आंतरिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देती है।
राहु की महादशा में राहु की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में राहु की अंतरदशा की अवधि लगभग दो वर्षो आठ महीने एवं बारह दिनों की होती है। इस अवधि में जातक पर इसका क्या प्रभाव होगा यह कुंडली में राहु की स्थिति को देख कर बताया जा सकता है।
यानि कुंडली में राहु अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि में बैठा हो, शुभ ग्रहों से युति या दृष्टि संबन्ध बना रहा हो तो ऐसे में यह अंतरदशा जातक के लिए बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है।
इस अवधि में अचानक से धन प्राप्त होना। रोजगार या व्यवसाय में उन्नति, सामाजिक क्रिया कलापों में रूचि जाग्रत होना एवं उसमे सफलता मिलना आदि परिणाम मिलते है।
इसके वितरीत यदि कुंडली में राहु अशुभ भावों में हो, अपनी नीच राशि में हो, पाप ग्रह से युत या दृष्टि हो तो इस अवधि में जातक को अनेक प्रकार के कष्टो का सामना करना पड सकता है।
जातक हमेशा कलह एवं रोगों से पीड़ित रहता है, धन की हानि, धोखा मिलना, रोजगार या व्यवसाय में अचानक नुकसान होना प्रायः देखी जाती है। इस अवधि में जातक बुद्धि भ्रमित हो जाता है। पारिवारिक सुख शांति का नाश होने लगता है। लड़ाई झगड़े केस मुकदमे की समस्याओं से प्राय ग्रसित रहता है।
राहु की महादशा में वृहस्पति की अंतर्दशा का फल
राहु की महादशा में गुरु की अंतरदशा की अवधि 2 वर्ष, चार महीने एवं चौबीस दिनों की होती है। हांलाकी ऐसा माना जाता है की राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा मध्यम प्रभाव वाली होती है। यदि कुंडली में राहु की स्थिति शुभ हो तो इस अवधि जातक के स्वास्थ मामलों में थोड़ी बहुत सुधार आती है।
राहु किसी शुभ ग्रह की युति एवं दृष्टि संबंध में हो तो यह अंतरदशा जातक को व्यावसाय, रोजगार आदि में सफलता दिलाने वाली होती है जातक की रूचि तंत्र मंत्र की ओर भी बढ़ती है।
धार्मिक कार्य की ओर अग्रसर होता है। इस समय जातक आध्यात्मिक यात्रा भी करता है। जातक के कैरियर में वृद्धि, रिश्तो में वृद्धि, पदोन्नोति, विदेश से अपने देश लौटना आदि इस अवधि के दौरान होती है। जातक के विचार श्रेष्ठ एवं तर्कपूर्ण होते है।
यदि कुंडली में राहु की स्थिति अशुभ हो, नीच राशि हो या पाप ग्रहों से युति एवं दृष्टि संबंध हो तो ऐसे में इस इस अंतर दशा में जातक भ्रमित हो जाता है अपने कुबुद्धि के कारण बड़े पैमाने पर अपना नुकसान कर देता है।
जातक धार्मिक कार्यो से विमुख हो जाता है। अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होता है एवं अपने स्वास्थ के प्रति काफी दुखी होता है।
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राहु की महादशा में शनि की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में शनि की अंतरदशा लगभग दो साल, दस महीने एवं 4 दिनों की होती है। यदि कुंडली में राहु एवं शनि ग्रह शुभ भावो में अपने मीन राशि में, उच्च राशि या स्वराशि में विद्यमान हो, शुभ ग्रहों से युक्त एवं दृष्टि हो तो यह अंतरदशा जातक को समाज में मान सम्मान, प्रतिष्ठता एवं लाभ दिलाने वाला होता है।
इस अवधि में जातक राजनीतिज्ञ कार्यों में दक्ष होता है। कहा जाता हैं की ऐसे समय में जातक को पश्चिम दिशा एवं निम्न वर्ग के लोगो से विशेष लाभ होता है। व्यापार में खासकर काले रंग की वस्तुओं के व्यापार, काले पशुधन आदि से लाभ होता है। समाज परिवार में मान प्रतिष्ठता की वृद्धि होती है।
इसके विपरीत कुंडली में यदि इनकी स्थिति खराब हो पाप ग्रहों से युत या दृष्टि हो अपनी नीच राशि या अशुभ भाव में विद्यमान हो तो ऐसे मे जातक को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकी राहु एवं शनि दोनों ही क्रूर एवं पापी ग्रह है।
ऐसे में जीवन में बहुत सारी नाकारात्मक चुनौतियों उत्पन्न हो जाती है। धन संपत्ति, मान सम्मान, रोजी रोजगार में नुकसान होने लगती है। जातक अपना आपा खोने लगता है पारिवारिक कलह, पति पत्नी के सम्बन्धों में कटुता, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ आती रहती है। इस अंतरदशा में दुर्घटनाओं का भी योग बन जाता है।
राहु की महादशा में बुध की अंतरदशा का फल
राहु की महादशों में बुध की अंतरदशा 2 साल 6 महीने और अठारह दिनों की होती है। यदि राहु एवं बुध कुंडली में शुभ स्थिति में हो तो यह अवधि जातक के लिए शुभ होता है।
व्यावसाय, कैरियर आदि के क्षेत्र में यह अच्छे परिणाम देने वाला होता है। व्यापार में उन्नति एवं लाभ के योग बनते है।
निसंतान लोगो की झोली भर जाती है। जातक अपने बातों से सभी को प्रभावित करता है।
समाज एवं परिवार में संबंध प्रगाढ होते हैं। आय के विभिन्न प्रकार के स्रोत खुल जाते है। कुंडली में बुध यदि अपनी उच्च राशि या स्वराशि का हो तो जातक उत्तम विद्या प्राप्त करता है।
यदि कुंडली में इनका प्रभाव अशुभ हो तो जातक को अनेकों संकटों का सामना करना पड़ सकता है। दाम्पत्य संबंधो में कटूता आती है।
प्रत्येक कार्यों में असफलता का सामना करना पड़ सकता है। जातक का घर परिवार, समाज के लोगों से मतभेद या विद्रोह की स्थिति बन जाती है।
बुरे कार्यों में संलिप्ता बढ़ जाती है। जिसकी वजह से उसे अपयश एवं विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है। जातक त्वचा संबंधित रोग से पीड़ित रहता है।
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राहु की अंतरदशा में केतू की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में केतू का अंतरदशा एक वर्ष और 18 दिनों का होता है। ज्योतिष शस्त्र के अनुसार राहु एवं केतू को छाया ग्रह माना गया है। इसलिए इस दशा काल को शुभ नही माना जाता है।
इस अवधि के दौरान जातक की बुद्धि भ्रमित रहती है। उसे अच्छे बुरे का सही ज्ञान नही हो पाता है। ऐसे मे नीच जनो की संगति उसे दुष्कर्म आदि करने की प्रवृति जागृत करने वाली होती है।
अनेक रोग जैसे ज्वर, मस्तिष्क के रोग आदि की प्रबल संभावना होती है।
जातक को इस अवधि के दौरान शस्त्र, संक्रमण, जहर, अग्नि एवं शत्रुओं का भी भय होता है। उनके घर में कलह की स्थिति बनी रहती है।
जातक बुरे कार्यों में लिप्त रहता है। घर परिवार एवं समाज में मतभेद एवं विद्रोह की स्थिति बनती रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रो के कारण जातक की परेशानी बढ़ सकती है।
राहु की महादशा में शुक्र की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में शुक्र की अंतरदशा की अवधि तीन वर्षों की होती है। जुब कुंडली में राहु एवं शुक्र की स्थिति शुभ होती है इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से युत होते है, अपनी उच्चराशि या मित्रराशि के होते है तो यह अंतरदशा जातक को कई प्रकार के शुभ परिणाम देने वाले होते हैं।
जातक को अनेक प्रकार के भोग एवं सुखों की प्राप्ति होती है। उसका मन हमेशा चंचल एवं प्रफुल्लित रहता है।
दाम्पत्य जीवन खुशहाल होती है एवं भूमि भवन वाहन आदि सुखों की प्राप्ति होती है। यह अंतरदशा जातक के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है।
वह सभी भौतिक सब साधनो विलासिता की वस्तुओ से संपन्न होता है।
अपने जीवन मे आने वाली कठिनाइओ को दूर करने के लिए जातक कठिन से कठिन मेहनत करता है।
इस अवधि मे जातक की पदोन्नति भी संभव हो जाती है।
यदि कुंडली में राहु एवं शुक्र अशुभ प्रभावों से युत हो तो जातक के सुखों में कमी आ जाती है। परिवार समाज में उसका विरोध होता है। पति पत्नी के सम्बन्धों में कलह आ जाती है। संतान पक्ष से कष्ट मिलता है। धातू रोग, क्षय रोग, मंदाग्नि जैसे रोगों का सामना हो सकता है। कुंडली में शुक्र यदि अष्टमेश हो तो जातक को मृत्यु के समान कष्ट मिलता है।
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राहु की महादशा में सूर्य की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में सूर्य की अंतरदशा 10 महीने एवं 24 दिनों का होता है। सूर्य कुंडली में यदि अपनी उच्च राशि ,स्वराशि या मूल त्रिकोणस्य हो और राहू ग्रह शुभ प्रभाव में होतो ऐसे में इस अवधि में जातक का व्यापार एवं कैरियर तेजी से फैलता है।
जातक को पैतृक संपत्ति का लाभ मिलता है। जातक निडर एवं साहसी बनकर जीवन में सफलता पाने के लिए जोखिम भी उठाते है।
जातक को विदेश यात्रा का अवसर मिलता है उसे नाम एवं प्रसिद्धि भी प्राप्त होती है। राजनीति के क्षेत्र में मान सम्मान मिलता है और प्रशंसा पाने के लिए दिखावे के लिए दान धर्म भी करता है।
यदि कुंडली में राहु एवं सूर्य अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के पिता को कष्ट मिलता है। जातक बहुत ही क्रोधी एवं झगड़ालू प्रवृति का हो जाता है। अकारण ही दूसरे से लड़ने एवं झगड़ने लगता है। अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता है।
जातक को इस अंतर्दशा काल में शस्त्रों का भय, अग्नि का भय, जहरपान से खतरा, नेत्र रोग, घर परिवार में कलह, समाज एवं शासन का भय, शत्रुओ से संकट आदि का भय बना रहता है।
जातक को अपने व्यवसाय एवं कार्य क्षेत्र में अपने उच्चाधिकारियों से वाद विवाद की संभावना बनी रहती है।
राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में चंद्रमा का अंतरदशा एवं वर्ष 6 महीने का होता है। राहु एवं चंद्रमा की स्थिति यदि कुंडली में शुभ हो और वे दोनों ग्रह शुभ ग्रहों के प्रभाव से युत हो शुभ ग्रहों की दृष्टि उनके उपर हो एवं ये अपने उच्च राशि, स्वराशि एवं मित्रराशि में विद्यमान हो तो ऐसे में जातक का मन हमेशा प्रसन्नचित एवं प्रफुल्लित रहता है।
जातक ललित कला के क्षेत्र में विशेष रूप से सफलता हासिल करता है एवं मान सम्मान पाता है। ऐसे जातक की बुद्धि स्थिर होती है एवं वह धार्मिक विचारधारा का होता है। आत्मजनों के आशीर्वाद से उसे सुख एवं संपन्नता की प्राप्ति होती है।
इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव होने पर जातक का मन बेचैन एवं चिंताग्रस्त होता है। असीम मानसिक कष्टो का सामना करना पड सकता है। इस अवधि में दाम्पत्य जीवन भी अस्त व्यस्त हो जाता है। जीवन साथी के साथ मनमुटाव, तलाक यहाँ तक की मृत्यु भी हो जाती है।
लोगों से मतभेद, कष्ट, संकट की संभावना बनी रहती है। जातक को वायुजनित रोग एवं शीतज्वर से पीड़ा मिलती है। मानसिक तनाव, भ्रम, अवसाद की स्थिति बनी रहती है। किसी भी कार्य को करने में कई प्रकार की अडचनों का सामना करना पड सकता है।
राहु की महादशा में मंगल की अंतरदशा का फल
राहु की महादशा में मंगल की अंतरदशा 1वर्ष और 18 दिनों की होती है। यह दशा काल को बहुत सकारात्मक नही कहा जा सकता है क्योंकी यह जातक के आक्रामक प्रवृति को बढ़ाने वाला होता है।
लेकिन यदि राहु शुभ भावो में हो और मंगल अपनी उच्चराशि या स्वराशी का होकर केंद्र या त्रिकोण में हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो इस अवधि में जातक उत्साही रहता है और अपने शत्रुओ एवं विरोधियो पर विजय प्राप्त करता है।
यदि इनमे से कोई एक गृह अशुभ हो तो इसका जातक पर मिश्रित फल मिलता है लेकिन यदि दोनों ही ग्रह अशुभ प्रभाव से युत हो तो ऐसे जातक पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है।
जातक अनेक प्रकार के कष्टों को भोगने वाला होता है। हर वक्त अनावश्यक क्रोध करता है। जिसकी वजह से उसके बढ़ वर्ग दर्ग दांपत्य एवं पुत्र सुख मे कमी आती है।
उसे हमेशा चोर, सर्प, अग्नि का भय सताता रहता है। दुर्घटना की संभावना बनती है। समाज एवं परिवार से तिरस्कार पाता है। जीवन कठिन लगने लगती है कभी कभी जातक में आत्महत्या की प्रवृति जाग्रत होने लगती है।
आखरी में
अंतरदशाओं के प्रभाव को जानने के लिए, व्यक्ति के जन्मकुंडली का विश्लेषण करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। ज्योतिषाचार्यों द्वारा कुंडली के ग्रहों के स्थिति, उनके अवस्थान, दशाओं और अंतरदशाओं के समय के अनुसार विविध प्रकार की परामर्श दी जाती है।
यह ध्यान देने योग्य है कि ग्रहों की अंतरदशाओं का प्रभाव समय के साथ बदल सकता है और विभिन्न व्यक्तियों के जीवन में विभिन्न प्रकार के परिणामों का कारण बन सकता है।
ज्योतिष के अनुसार, राहु की महादशा में यदि किसी व्यक्ति को दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम मिल रहे हों, तो उन्हें कुंडली के अनुसार उपाय करने की सलाह दी जाती है, जैसे कि दान, पूजा, व्रत आदि।
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